प्रिय पाठक गण,
स्टेरिलाइजेशन ड्रम पर अपनी बात हिंदी में रखने से पहले मैं यह बता दूं कि ISHA World News की पहली प्रति के जारी होने के बाद, देश के अधिकांश हिस्सों से मेरे पास यह आवाज पहुंची कि इंग्लिश मीडियम में छपी सामग्री के साथ साथ उसका हिंदी में अनुवाद भी प्रकाशित किया जाय। मेरे विचार से यह पूरी तरह से संभव तो नहीं है पर समय समय पर यथा सम्भव कुछ सामग्री हिंदी में भी प्रकाशित करने का प्रयास किया जाएगा और यह प्रयास उसी का हिस्सा है। यहां मैं आप सबको यह बता दूं कि सीएसएसडी के कुछ कार्मिकों की सुविधा के लिए यहां मेरे लेखन की भाषा शुद्ध हिंदी न होकर, सीएसएसडी में बोली जाने वाली कामकाजी भाषा होगी।
आप सभी जानते हैं कि जब पहले स्टीम स्टेरिलाइजर का आविष्कार हुआ, यह बहुत साधारण था, एक प्रेशर कुकर की तरह था, समय बीतता गया, धीरे धीरे इसमें सुधार होते गए और उनमे काफी तादाद में मेडिकल आइटम्स को स्टेरिलाइज्ड किया जाने लगा। पर कुछ ही दिनों में लोगों के सामने स्टेराइल किए हुए आइटम्स की स्टेरिलिटी बरकरार रखने की समस्या आड़े आने लगी ताकि उन स्टेराइल आइटम्स को मरीजों पर कुछ दिनों बाद भी बिना दुबारा स्टेराइल किए इस्तेमाल किया जा सके। लोगों की इस समस्या का समाधान करने के लिए पैकेजिंग मटेरियल पर रिसर्च शुरू हुई जिसके परिणाम स्वरूप "स्टेरिलाइजेशन ड्रम" का प्रादुर्भाव हुआ। अब विभिन्न प्रकार के मेडिकल आइटम्स को स्टेराइल करने के लिए और स्टेरिलिटी को मेन्टेन करने के लिए स्टेरिलाइजेशन ड्रम का इस्तेमाल किया जाने लगा। उस समय के हिसाब से स्टेरिलाइजेशन ड्रम एक सर्वोत्तम पैकेजिंग मटेरियल था, पर समय बीतने के साथ साथ स्वास्थ्य जगत को स्टेरिलाइजेशन ड्रम की खामियां भी धीरे धीरे समझ आने लगीं, लिहाज़ा इससे बेहतर पैकेजिंग मटेरियल की खोज की दिशा में काम किया जाने लगा, जिसके परिणामस्वरूप वर्तमान में प्रयोग किए जाने वाले पैकेजिंग मटेरियल्स जैसे SMS, Crap paper, pouches, rigid container आदि अस्तित्व में आए। समय के साथ साथ ये आधुनिक पैकेजिंग मटेरियल्स, स्टेरिलाइजेशन ड्रम के स्थान पर इस्तेमाल किए जाने लगे।
जहाँ तक मुझे जानकारी है, वर्तमान में सभी कार्पोरेट हास्पिटल्स और कुछ एडवांस प्राइवेट हास्पिटल्स में स्टेरिलाइजेशन ड्रम का इस्तेमाल पूरी तरह से बंद हो चुका है, यानि ड्रम में स्टेरिलाइजेशन नहीं किया जा रहा है। पर सरकारी अस्पतालों समेत देश के अनेकों अस्पतालों में, नर्सिंग होम्स में मरीजों की चिकित्सा में प्रयोग होने वाले मेडिकल इंस्ट्रूमेंट्स, ड्रेसिंग मटेरियल्स व अन्य मेडिकल उपकरणों को ड्रम में स्टेराइल करने की पुरानी प्रथा आज भी बदस्तूर जारी है। आइए, अब हम देखें कि स्टेरिलाइजेशन ड्रम को एक अच्छा पैकेजिंग मटेरियल क्यों नहीं माना जाता है। इसके लिए हम सिलसिलेवार यह परखेंगे कि एक आदर्श पैकेजिंग मटेरियल की वो कौन कौन सी चुनिंदा विशेषताएं होती हैं जो स्टेरिलाइजेशन ड्रम के लिए या तो चैलेंजिंग होती हैं या उसमें होती ही नहीं हैं। तो आइए हम इस बात का मूल्यांकन करें कि ड्रम एक आदर्श पैकेजिंग मटेरियल की किन किन विशेषताओं की कसौटी पर खरा उतरता है :-
1- किसी भी पैकेजिंग मटेरियल के अंदर ये विशेषता होनी चाहिए कि स्टेरिलाइजर के अंदर लोड किए गए पैकेज में विद्यमान हवा को वह आसानी से बाहर निकलने दे, air removal को facilitate करे ताकि पैकेज में sterilant (इस केस में स्टीम) का पेनेट्रेशन सुनिश्चित हो सके। अगर Pre-vacuum स्टीम स्टेरिलाइजर में स्टेरिलाइजेशन ड्रम का प्रयोग किया जाता है तो वहां ड्रम से air removal आसानी से हो सकता है, जो कि स्टीम पेनेट्रेशन होने के लिए अत्यंत आवश्यक है। पर अगर ड्रम का प्रयोग ग्रैविटी डिस्प्लेसमेन्ट स्टीम स्टेरिलाइजर में किया जाता है तो वहां कुछ समस्या जरूर आड़े आती नजर आ रही है। आइए इसको हम कुछ इस तरह समझते हैं। जैसा कि हम जानते हैं कि 162 डिग्री सेंटीग्रेड से कम तापमान पर हवा (air) स्टीम से भारी होती है और 162 डिग्री सेंटीग्रेड से ज्यादा तापमान पर हवा (air) स्टीम से हल्की होती है। अतः स्टीम स्टेरिलाइजेशन के लिए निर्धारित तापमान के दोनों पैरामीटर्स, 134 डिग्री व 121 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर हवा, स्टीम से भारी ही होती है और इसी आधार पर ग्रैविटी डिस्प्लेसमेन्ट स्टीम स्टेरिलाइजर काम करता है। मान लीजिए कि आपने एक स्टेरिलाइजेशन ड्रम में Gauze Pieces पैक कर ग्रैविटी डिस्प्लेसमेन्ट स्टीम स्टेरिलाइजर में लोड कर दिया और स्टेरिलाइजर के चैम्बर मे स्टीम पहुंचाने वाले स्टीम inlet valve को खोल दिया। अब स्टेरिलाइजर के जैकेट में स्टीम के अत्यधिक दबाव के कारण ( लगभग 15 से 20 पौंड/ इंच) चैम्बर के अंदर उपर की तरफ से स्टीम force के साथ प्रवेश करती है जिससे भारी होने की वजह से हवा चैंबर में नीचे की तरफ खिसकते हुए Drain से होते हुए बाहर निकलती है। इस तरह धीरे धीरे स्टीम उपर की तरफ से नीचे आते हुए हवा का स्थान लेती है। चूंकि ड्रम के बगल वाली सतह में ही छेद (vents in lateral side only) होते हैं और उपर के ढक्कन (lid) और पेंदी (bottom surface) में कोई छेद नहीं होता है इसलिए ड्रम के अंदर की हवा पर gravitational force का असर नहीं होता है और हवा नीचे की तरफ नहीं निकल पाती है। चैंबर में उपर की तरफ से आ रही स्टीम, ड्रम की बगल की सतह (Lateral sides) को चारों तरफ से घेर लेती है, जिसकी वजह से ड्रम के अंदर की हवा को बाहर निकलने का पूरा रास्ता नहीं मिल पाता और कुछ हद तक हवा का एक बड़ा हिस्सा ड्रम में अंदर ही कैद हो जाता है (air is entrapped by surrounding Steam). अगर ड्रम के अंदर की हवा पूरी तरह बाहर नहीं निकल पाएगी तो ड्रम के अंदर स्टीम का पेनेट्रेशन भी पूरी तरह नहीं हो पाएगा। यदि ड्रम की उपरी सतह (lid) व निचली सतह पेंदी (bottom surface) में छेद (holes) होते तो gravitational force की वजह से ड्रम के अंदर की हवा भी पूरी तरह बाहर निकल पाती और स्टीम का पेनेट्रेशन सुनिश्चित होता।
अतः हम देखते हैं कि स्टेरिलाइजेशन ड्रम adequate air removal और स्टीम पेनेट्रेशन की शर्तों को पूरा नहीं करता, इसलिए यह ग्रैविटी डिस्प्लेसमेन्ट स्टीम स्टेरिलाइजर में इस्तेमाल के लिए सर्वथा अनुपयुक्त है।
2-पैकेजिंग मटेरियल्स की अन्य विशेषताओं में से एक प्रमुख विशेषता ये होनी चाहिये कि वह एक भरोसेमंद बैक्टेरियल बैरियर का काम करता हो। अब आइए देखते हैं कि स्टेरिलाइजेशन ड्रम बैक्टेरियल बैरियर प्रापर्टी की इस अति आवश्यक व महत्वपूर्ण विशेषता को पूरा करने में खरा उतरता है कि नहीं।
(a) आप देखेंगे कि जब स्टेरिलाइजेशन ड्रम को उसके ढक्कन (lid) से बंद किया जाता है तो ड्रम बंद तो हो जाता है पर वह air tight seal नहीं होता है। वह air tight seal बंद इसलिए नहीं हो पाता क्योंकि स्टेरिलाइजेशन ड्रम में वाशर (gasket) का इस्तेमाल नहीं होता। मेटल से मेटल पूरी तरह seal नहीं हो पाता, उसमें कुछ न कुछ space रह ही जाता है जो कि बैक्टीरिया के प्रवेश करने के लिए काफी होता है। ध्यान रहे कि बैक्टीरिया समेत माइक्रोआर्गेनिज्म्स इतने सूक्ष्म होते हैं कि उन्हें देखने के लिए माइक्रोस्कोप का सहारा लेना पड़ता है। इसी वजह से माइक्रोआर्गेनिज्म्स की लंबाई चौड़ाई माइक्रान मे नापी जाती है आप सभी जानते हैं कि कि 1मिलीमीटर 1000 माइक्रान और 1 इंच 25000 माइक्रान के बराबर होता है। एक औसत बैक्टीरिया की लंबाई व मोटाई लगभग 2 माइक्रान से 8 माइक्रान के बीच होती है। अब आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि ढक्कन बंद किए जाने के वावजूद, स्टेरिलाइजेशन ड्रम के अंदर इतने सूक्ष्म बैक्टीरिया कितनी आसानी से प्रवेश कर सकते हैं।
(b) इसी प्रकार, जब ड्रम को स्टेरिलाइजेशन प्रोसेस पूरा होने के बाद स्टेरिलाइजर से निकाला जाता है तो उसके बगल के छेदों (lateral surface holes) को एक मेटल शीट locking mechanism के द्वारा बंद (lock) किया जाता है। यहां भी वाशर यानि gasket का इस्तेमाल न होने की वजह से स्टेरिलाइजेशन ड्रम पूरी तरह से air tight seal बंद नहीं हो पाता है और उसमें gaps के जरिए बैक्टीरिया के प्रवेश करने की संभावना बरकरार रहती है। अतः हम यहां भी देखते हैं कि स्टेरिलाइजेशन ड्रम बैक्टेरियल बैरियर प्रापर्टी की कसौटी पर खरा नहीं उतरता। अतः ड्रम के अंदर चिकित्सा सामग्री को स्टेराइल करने के बाद स्टोरेज नहीं किया जा सकता।
3 पैकेजिंग मटेरियल की एक गुणवत्ता ये भी होनी चाहिये कि उससे स्टेराइल सामान की aseptic delivery सुनिश्चित की जा सके। यहां हम ये पाते हैं कि जब भी स्टेरिलाइज्ड ड्रम के ढक्कन को स्टेराइल सामान निकालने के लिए खोला जाता है तो उसी समय सारा स्टेराइल सामान खुले वातावरण में exposed हो जाता है और ड्रम की बैक्टीरियल बैरियर प्रापर्टी उसी समय समाप्त हो जाती है। यानि ड्रम के अंदर स्टेरिलाइज किए गए सामान को एक बार खुलने के बाद तुरंत तो इस्तेमाल किया जा सकता है पर उसे स्टोर करके नहीं रखा जा सकता है। परंतु प्रैक्टिकल में होता यह है कि ड्रम में स्टेरिलाइज सामान को, विशेषकर ड्रेसिंग मटेरियल्स क़ो बार बार खोलकर थोड़ा थोड़ा निकालकर कई हफ्तों तक मरीजों पर इस्तेमाल किया जाता है जो कि सर्वथा अनुचित है। इस प्रकार हमने पाया कि ड्रम aseptic delivery की शर्त पर भी खरा नहीं उतरता और इसे स्टोरेज के लिए भी इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
4 पैकेजिंग मटेरियल temper proof भी होना चाहिए ताकि अगर कोई स्टेरिलाइज पैकेज को खोलकर दुबारा बंद या सील करे तो पता लग जाए कि इसे पहले भी खोला गया है, ये खुले वातावरण मे expose हो चुका है, लिहाजा इसे इस्तेमाल न करें। पर ड्रम के मामले में ऐसा नहीं है, स्टेरिलाइज ड्रम को अनेकों बार खोलकर बंद किया जा सकता है और किसी को पता भी नहीं लग सकता।
5 - स्टेरिलाइजेशन ड्रम के प्रयोग से संबंधित कुछ अन्य अवांछित बातें भी हैं जिनके घटित होने की पूरी संभावना बनी रहती है, जो इस प्रकार हैं -
ड्रम को स्टेरिलाइजर में डालते वक्त टेक्नीशियन ड्रम के छिद्रों (lateral vents) को खोलना भूल सकता है, जिसकी वजह से मटेरियल तो स्टीम से expose होगा ही नहीं। इसी तरह टेकनीशियन स्टेरिलाइजेशन प्रोसेस पूरा होने पर ड्रम बाहर निकालते वक्त lateral vents को बंद करना भी भूल सकता है, जिससे उसकी स्टेरिलिटी समाप्त हो जाती है।
स्टेरिलाइजेशन ड्रम मे स्टेराइल किए हुए अगर उस इंस्ट्रूमेंट को निकालना है जो सबसे नीचे पड़ा हुआ है तो ऐसा करना काफी मुश्किल होता है और ऐसा करते वक्त बाकि इंस्ट्रूमेंट्स भी खुले वातावरण में exposed ho जाते हैं।
स्टेरिलाइजेशन ड्रम में स्टेराइल किया गया सामान अधिकतर गीला (wet packs problem) मिलता है क्योंकि इसमें सामान भरे होने पर ड्राईंग ठीक से नहीं हो पाता हैं।
वर्तमान में जबएक्सीलेन्ट माइक्रोबियल बैरियर प्रापर्टीज वाले अनेकों पैकेजिंग मटेरियल्स उपलब्ध हैं ऐसे में आदर्श पैकेजिंग मटेरियल के अनेकों पैरामीटर्स पर खरा न उतरने वाले स्टेरिलाइजेशन ड्रम इस्तेमाल करने का कोई औचित्य नहीं है। जैसा कि हम सब जानते हैं कि किसी भी अस्पताल का परम उद्देश्य मरीज की सुरक्षा (patient safety) सुनिश्चित करना होता है। इस मुद्दे को भी ध्यान में रखते हुए ड्रम का इस्तेमाल बंद किया जाना चाहिए। जहां भी ड्रम का इस्तेमाल हो रहा है वहाँ अगर ड्रम की जगह आधुनिक पैकेजिंग मटेरियल्स का इस्तेमाल शुरू हो, तो मुझे पूरी तरह यकीन है कि उस अस्पताल के मरीजों में Surgical Site Infection की संख्या में भारी कमी नजर आएगी।
जय हिंद।
Capt Baban Rai
Indian Spinal Injuries Centre,
Vasant Kunj, New Delhi.